Wednesday 17 June 2015

भारत का स्वतंत्रता आन्दोलन

     भारत में राष्ट्रीय भावना का उदय 19वी  सदी में हुआ. शिक्षित लोगों ने पाश्चात्य शिक्षा प्राप्त कर भारत में जन-आन्दोलन का प्रारंभ किया.

     1885 में ए.ओ.ह्युम ने बम्बई में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की, इसके प्रथम अध्यक्ष डब्लू.सी.बनर्जी बनाये गए. तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड डफरिन था.  लार्ड डफरिन ने कांग्रेस को "सेफ्टी वाल्व" कहा.

     बंगाल विभाजन (1905):-  वायसराय लार्ड कर्जन ने राष्ट्रवादी गतिविधियों को रोकने के उद्देश्य से बंगाल को पूर्वी बंगाल तथा पश्चिम बंगाल (बिहार और ओडिशा) में बाँट दिया. विभाजन के दिन  (15 अक्टूबर  1905) को शोक दिवस के रूप में मनाया गया.

     स्वदेशी आन्दोलन (1905) बंगाल विभाजन के विरोध में शुरू किया गया और विदेशी वस्तुओ का बहिस्कार किया गया.. राष्ट्रीय शिक्षा परिषद् का गठन किया गया और पूरे बंगाल में स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए संस्थाओ की स्थापना की गयी.

     सूरत अधिवेशन (1907) में कांग्रेस का विभाजन गरमदल और नरमदल के रूप में हो गया.

     दिल्ली दरबार (1911):- वायसराय लार्ड हार्डिंग ने सम्राट जार्ज पंचम और महारानी मेरी को भारत  बुलाया. दिल्ली दरबार में बंगाल विभाजन को रद्द किया गया और राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित किया गया.

     होमरूल आन्दोलन (1916):- आयरलैंड से प्रेरित होकर भारत में होमरूल आन्दोलन का शंखनाद एनी बेसेंट ने किया. बाल गंगाधर तिलक ने महाराष्ट्र में होमरूल लीग का गठन किया..

     लखनऊ समझौता (1916) में कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने एक साथ होकर डोमिनियन राष्ट्र के लिए संविधान तैयार किया.

     राष्ट्रवादी गतिविधियों के बढ़ते प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से ब्रिटिस सरकार ने रौलेट एक्ट जैसे कानून को लागू किया. गाँधी जी व कई महत्वपूर्ण नेता गिरफ्तार किये गए जिनके विरोध में जलियावाला बाग़ में सभा का आयोजन किया गया.

     जलियावाला बाग़ (13 अप्रैल 1919 )में आयोजित सभा को विफल करने के लिए जनरल डायर ने सैनिक कार्यवाई की जिससे हजारो भारतीय शहीद हो गए. जलियावाला बाग़ हत्याकांड के विरोधस्वरुप रविंद्रनाथ टैगोर ने नाईटहुड की उपाधि त्याग दी. सरकार ने जांच के लिए हंटर कमीशन का गठन किया.

     खिलाफत आन्दोलन (1919) तुर्की में खलीफा का पद समाप्त करने के विरोध में भारतीय मुसलमानों ने मोहम्मद अली और शौकत अली के नेतृत्व में अंग्रेज शासन की विरुद्ध खिलाफत आन्दोलन का आगाज किया. काग्रेस के समर्थन के बाद इस आन्दोलन ने "असहयोग आन्दोलन" को बल दिया.

     असहयोग आन्दोलन (1920-22) के तहत शासकीय कार्यो में पूर्णतः असहयोग किया गया. शिक्षण संस्थाओ का बहिष्कार, कर अदायगी न करना,  अदालतों का बहिष्कार आदि विरोध के साथ साथ कई रचनात्मक कार्य किये गए. ५ फरवरी १९२२ में चौरा-चौरी घटना के बाद गाँधी जी ने इसे वापस ले लिया.

No comments:

Post a Comment